Saturday, September 15, 2012

मोम की मूरतें नहीं हैं ये

जब वूमोज़ यानी वूमेन मोज़िल्ला के लिए प्रियंका और हेमा ने अपनी बात स्लाइडों के माध्यम से रखनी शुरू की उसी वक्त मैं वूमोज़ के लिए हिन्दी का क्या छोटा-सा शब्द बन सकता है सोच रहा था। महिला मोज़िल्ला यानी ममो या फिर मोज़िल्ला महिला यानी मोम। ममो – अच्छा नहीं लगता। मोम! थोड़ी-सी हंसी भी आ गयी थी इस संयोग पर। तबतक प्रियंका सवाल खड़े कर रही थीं कि फ़ॉस में महिलाओं की शिरकत कम क्यों हैं वह भी महज दो फीसदी? क्या इसके लिए महिलाएँ ही ज़िम्मेदार हैं या फिर पुरूषों के दिमागी आग्रह उन्हें यहाँ भी पीछे धकेल देते हैं? सवाल ज़ायज हैं और ये सवाल फ़ॉस में मौज़ूद उन पुरूष गीकों से किए गए हैं जो ओपन सोर्स को ज़म्हूरियत की पाठशाला मानते हैं। और जवाब भी उन्हीं पुरूषों को देने हैं। सवाल को धौंस के साथ पूछने के लिए हेमा और प्रियंका का शुक्रिया। निश्चित रूप से फक्त मोम की मूरतें नहीं हैं ये।

कल मोज़िल्ला के एक ज़लसे में जाना हुआ – मोज़िल्ला कार्नीवल। मैं अभी उसी ज़लसे के एक हिस्से की बात कर रहा था। मैंने भी अमन के साथ मोज़िल्ला फ़ायरफ़ॉक्स मैथिली रिलीज की पूरी कहानी – लोकेल से रिलीज बिल्ड – कही, बगज़िला के माध्यम से। फ़ायरफ़ॉक्स के रिलीज का यह तरीका नया रहा। मुझसे पहले फैज़ल ने अपनी बात रखी थी। फैज़ल ने फ़ायरफ़ॉक्स उर्दू के लिए काम कर रहीं हुदा के साथ बढ़िया काम किया है और उम्मीद है हम उर्दू फ़ायरफ़ॉक्स जल्द ही रिलीज होता देख पाएँगे। विनील से भी मिलना हुआ। सायक, सौम्या, अंकित, फैज़ल आदि के रूप में पुणे में मोज़िल्ला को अच्छे कार्यकर्ता मिले हैं और उम्मीद है हम और अच्छे कार्यक्रम इनलोगों की वजह से देख पाएँगे।

फ़ायरफ़ॉक्स के लोकलाइजेशन पर अपने प्रजेन्टेशन के बाद अमन ने विनय नेनवाणी की मदद की और उन्होंने सिंधी फ़ायरफ़ॉक्स के लिए निवेदन कर दिया है। वहीं एक मंगोलियाई उपयोक्ता भी मिला। वह परेशान था कि उसकी लिपि फ़ायरफ़ॉक्स पर सही तरीके से रेंडर नहीं होती है। उसने बताया कि लिपि ऊपर से नीचे की ओर जाती है और एक ही अक्षर के तीन-तीन रूप होते हैं जो उनकी स्थिति के अनुसार बदलते हैं यानी सबसे पहले है तो एक तरह से, बीच में है तो दूसरे तरीके से और आखिर में है तो कुछ अलग ही तरह से। वह बता रहे थे कि इंटरनेट एक्सप्लोरर इसे सपोर्ट कर रहा है जबकि फ़ायरफ़ॉक्स में यह संभव नहीं हो पा रहा है। इस समस्या को दूर किया जाना चाहिए। वह विकिपीडिया के लिए भी काम करते हैं।

Wednesday, September 12, 2012

ओपन सोर्स की ताकत, बोले तो, चैतन्य फ़ायरफ़ॉक्स ब्राउज़र अब मैथिली में भी

इसे हम ओपन सोर्स की ताकत ही कह सकते हैं कि चैतन्य फ़ायरफ़ॉक्स ब्राउज़र अब मैथिली में भी है। क्या ऐसा हम ऐसा किसी और जगह पर करने का दावा कर सकते हैं। शायद नहीं। हालाँकि यह ब्रॉउज़र काफी पहले से मैथिली में है लेकिन बीटा स्थिति से छुटकारा इसे अभी मिला है। यहाँ यह जिक्र करना जरूरी है कि सराय ने मैथिली के कंप्यूटरीकरण प्रोजेक्ट को मदद की थी और परिणाम है कि अभी केडीई, गनोम, फेडोरा, फ़ायरफ़ॉक्स, लिब्रेऑफिस, पिजिन सहित कई चीजें मैथिली उपलब्ध हैं। एक दफे रविकांतजी ने कहा था कि छोटी-छोटी भाषाओं से ओपन सोर्स जुड़ती है तो दोनों मजबूत होते हैं। हमलोग मगही, भोजपुरी, राजस्थानी जैसी भाषाओं की ओर भी बढ़ रहे हैं, यहाँ पर बढ़ सकते हैं, बेझिझक। रवि रतलामीजी ने छत्तीसगढ़ी कंप्यूटरीकरण का एक बड़ा काम पहले ही संपन्न कर लिया है।

जाना-माना फ़ायरफ़ॉक्स ब्राउज़र मैथिली भाषा में रिलीज कर दिया गया है। इसके पहले तक यह ब्राउज़र बीटा टेस्टिंग संस्करण में उपलब्ध था और इसे अब विधिवत् व आधिकारिक रूपेण मोज़िल्ला ने मैथिली के प्रयोक्ताओं के लिए जारी कर दिया है। 2000 के मुताबिक कुल मैथिली भाषी लोगों की संख्या करीब साढ़े तीन करोड़ से ऊपर है और ये सभी अपनी भाषा में इंटरनेट ब्राउज़िंग का आनंद ले सकते हैं। मोज़िल्ला फ़ायरफ़ॉक्स एक फ्री और ओपनसोर्स ब्राउज़र है जिसे मोज़िल्ला फाउंडेशन समुदाय की मदद से तैयार करती है। दुनिया की करीब चौथाई आबादी इंटरनेट चलाने के लिए मोज़िल्ला फ़ायरफ़ॉक्स का उपयोग करती है और इस लोकप्रिय ब्राउज़र अब मैथिली भाषा में उपलब्ध है। इसके पहले फ़ायरफ़ॉक्स 77 अन्य भाषाओं में रिलीज की जा चुकी है। यह जानना सुखद है कि यह मैथिली में उपलब्ध पहला ब्राउज़र है और यह विंडोज़, लिनक्स और मैक तीनों ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए उपलब्ध है। मैथिली फ़ायरफ़ॉक्स को आप यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं।

इस काम को अंजाम दिया है भाषा घर परियोजना के तरह कार्य कर रहे कुछ स्वयंसेवक। संगीता कुमारी का संयोजन राकेश रोशन, प्रतिभा के साथ बहुतेरे लोगों का योगदान रहा है। इसके तहत मैथिली कंप्यूटिंग के क्षेत्र में फेडोरा ऑपरेटिंग सिस्टम, लिब्रेऑफिस ऑफिस सूइट, मैथिली स्पेलचेकर सहित कई अन्य उपयोग अनुप्रयोगों को जारी किया जा चुका है। भाषा घर प्रोजेक्ट स्वयंसेवकों की मदद से वैसी भाषाओं पर काम करती है जो किसी सांस्थानिक समर्थन से वंचित हैं। इस संबंध में अन्य जानकारी के लिए यहाँ देखें।

हम शुक्रगुजार हैं कि इस खुशखबरी को हमारे कई ब्लॉगर साथियों, वेबसाइटों ने जगह दी है। कुछ लिंक आपको यहाँ हम दे रहे हैं-

http://raviratlami.blogspot.in/2012/08/blog-post_30.html

http://www.madhepuratimes.com/2012/09/blog-post_6.html

http://www.esamaad.com/regular/2012/09/10850

http://www.mithimedia.com/2012/08/blog-post_6080.html

http://rkjteoth.blogspot.in/2012/03/browser-search-engine.html

http://esamaad.blogspot.in/2012/08/blog-post_29.html

http://maithilaurmithila.blogspot.in/2012/08/blog-post_29.html

http://bhashaghar.blogspot.in/2012/09/blog-post.html

http://maithilputr.blogspot.in/2012/08/blog-post_9892.html

कुछ तस्वीरे साझा कर रहा हूँ -