Friday, November 14, 2014

We Worship Words

Hello, Good afternoon Everybody!

Honourable Dr. Vijay Bhatkar, Professor Arun Nigavekar , Professor. KP Mohanan, Dr. Raimond Doctor and all of our distinguished guests, welcome.

We are delighted to have you here to participate and share your thoughts in the 2nd FUEL GILT Conference 2014 hosted by Red Hat and C-DAC and supportd by Mozilla. Thank you all for sparing your time and coming here. The fact that many of you have travelled long distances and it indicates how much you all love FUEL Project.

You all know that FUEL Project works to create standardized linguistic resource needed for localization. FUEL Project believes in the wisdom of crowd. We added consensus into it. It creates consistency. 'Many Are Smarter Than the Few' and 'Collective Wisdom has the ability to shape Business, Economies, Societies and Nations'. Crowd wisdom is best suited for problems that involve optimization. And language is such an area. Pure/impure-correct/incorrect often become insignificant.

Recently a great poet Ahsok Vajpeyi was here in the great city of Pune in a program organized in the memory of great Hindustani classical singer Kumar Gandharva. He told one incidence showing the importance of the wisdom of a common people. He has used a word चमकतार in two of his poems. He listened this word during a train journey in the zone of Malwa. The person in the train used that word for the appearance of rain drops when mixing with sun light. उस व्यक्ति ने मालवा में कहा, देखो देखो, चमक-तार बरसा।  After enquiry Mr Vajpeyi found that the word was not even present in the Boli of Malwa, actually just after the mesmerising effect of raindrops, he instantly coined. A new word was created.

We worship words. Tukaram lived most of his life in Dehu, Pune, the पुण्यनगरी. And before I handover the mic to Ani Peter, our awesome compeerer for the event, I want to repeat the words of Sant Tukaram:

आम्हां घरी धन शब्दांचीच
शब्दांचीच शस्त्रें यत्न करूं
शब्द चि आमुच्या जीवाचें जीवन
शब्दें वांटूं धन जनलोकां।

This year we have changed the structure of the conference. We are going to have talks as well as Workshops running parallel . So, prepare yourself to be challenged, excited and inspired.

I want to say once more on behalf of FUEL Project, welcome.  It's a pleasure to see so many of you here.

Thank You!
Welcome address by me @ FUEL GILT Conference 2014.

Sunday, September 14, 2014

हिन्दी, मयंक छाया और लिटरेट वर्ल्ड

आज मुझे मयंकजी बहुत याद आ रहे हैं - साथ ही लिटरेट वर्ल्ड भी। शायद हिन्दी दिवस है और बार-बार कई अपडेट सोशल मीडिया पर देख रहा हूँ, शायद इसलिए...। देख रहा हूँ कि कैसे हमने लगभग भुला दिया है कि 2001 की शुरुआत में ही इस आभासी दुनिया यानी इंटरनेट पर जाने-माने (अंग्रेजी) पत्रकार और लेखक मयंक छाया नाम के एक गुजराती शख़्स ने भारतीय भाषा और साहित्य को हिन्दी भाषा में शानो-शौक़त के साथ रखने की एक शानदार ज़िद की थी।

आभासी दुनिया के वे लोग जिन्होंने हाल में इस क्षेत्र में कदम रखा है वे शायद लिटरेट वर्ल्ड और मयंक जी से परिचित नहीं होंगे। बात 2001 की है। तब वे कैलिफ़ोर्निया में रहा करते थे, आजकल शिकागो में हैं। उन्होंने इंटरनेट, सिनेमा और प्रकाशन की एक कंपनी बनाई थी — लिटरेट वर्ल्ड के नाम से। इसके अंतर्गत बहुभाषी साहित्यिक पोर्टल चलाने की योजना भी बनी। स्पेनिश और अंग्रेजी के साथ हिन्दी के लिए भी यह योजना बनी थी। तब मैं जनसत्ता में था और वहीं काम कर रहे संजय सिंहजी के रेफरेंस से लिटरेट वर्ल्ड के लिए काम करने के लिए ख़ुशी-ख़ुशी हाँ की थी। पोर्टल की काफ़ी भव्य और पेशेवर शुरुआत थी। मैं शुरू से इस पोर्टल से जुड़ा रहा और हिन्दी से जुड़े लगभग सभी काम में यहाँ शरीक रहा। बराबरी का रिश्ता, पेशेवर अंदाज़ और काफ़ी पैसा - सब कुछ जो तब हिन्दी पत्रकारिता के लिए लगभग दुर्लभ था  मुझे मिलने लगा। नया अनुभव था। पहली बार मैंने मयंकजी से ही सीखा था कि स्थापित संपादक और एक नया पत्रकार जिसने अपना कैरियर महज कुछ साल पहले शुरू किया हो  दोनों बराबरी के स्तर पर बात कर सकते हैं। सप्ताह में चालीस घंटे काम  यह भी मैंने यहीं सीखा।

हिन्दी के इस पोर्टल पर भाषा साहित्य और भारतीय संस्कृति से जुड़ी सामग्रियाँ पत्रिका की शक्ल में हर सप्ताह अपडेट की जाती थीं। यानी यह साप्ताहिक वेब पत्रिका थी। सारे राज्यों में लिटरेट वर्ल्ड ने अपने प्रतिनिधि रखे। उनके काम के लिए काफी बढ़िया मेहनताना दिया जाता रहा  लगभग हर शब्द एक रूपए की दर से। हर सप्ताह तीन लेखकों के स्तंभ छपते थे। एक लेखक तीन महीने तक लिटरेट वर्ल्ड के लिए लिखते थे — यानी बारह स्तंभ। मुझे याद है, क़रीब पाँच सौ शब्द के एक स्तंभ के लिए ढाई हज़ार रूपए तक दिए जाते थे। कई जाने-माने लेखकों ने लिटरेट वर्ल्ड के लिए लिखा  निर्मल वर्मा, विष्णु खरे, गीतांजलिश्री, मैत्रेयी पुष्पा, केपी सक्सेना, उदय प्रकाश, चित्रा मुद्गल, मृदुला गर्ग जैसे कई नाम। बंद होने के पहले आख़िरी कुछ महीनों को छोड़ दें तो सबकुछ काफ़ी बढ़िया रहा। लिटरेट वर्ल्ड ने प्रकाशन में आने की भी कोशिश की थी। भारी-भरकम साइनिंग अमाउंट के साथ कृष्णा सोबती के साथ बात हुई थी, लेकिन बीच में कहाँ किसने कब क्या कैसे किया कि यह विशुद्ध सद्भावपूर्ण कोशिश 'पूंजीवादी' साज़िश क़रार दी गई। ऐसा नहीं था कि मयंक जी भारतीय बाज़ार से परिचित नहीं थे। अमेरिका जाने के पहले पत्रकारिता का बड़ा हिस्सा उन्होंने भारत में ही बिताया था और उनका मानना था कि भारतीय भाषाओं के लेखक किसी भी दूसरी भाषाओं के लेखक से किसी मामले में कमतर नहीं हैं और इसलिए आर्थिक स्तर पर भी वैसा ही मानदेय उनके लेखन के लिए रहना चाहिए। लेकिन शायद हिन्दी साहित्य की दुनिया को भी यह पेशेवर अंदाज़ रास नहीं आया। कम पैसे में किसी पूंजीपति के लिए काम करें यह 'पूंजीवादी' शोषण अधिकतर को गवारा है, लेकिन उसी काम के कोई अधिक पैसे देने लगे तो वह 'पूंजीवादी' साज़िश हो जाती है! ख़ैर। आज भी हिन्दी में वैसी ई-पत्रिका नहीं आ पाई है जहाँ पर लगभग सारे छपे शब्दों के लिए काफ़ी बढ़िया भुगतान किया जाता हो। तब युनीकोड नहीं था, सुषा का उपयोग हम करते थे। वेब भी उतना ताक़तवर नहीं हो पाया था। काफ़ी तकनीकी समस्याएँ थीं। फिर भी, लिटरेट वर्ल्ड काफ़ी लोकप्रिय हुआ।

मुझे लगता है कि हिन्दी को वेब पर इसके आरंभिक दिनों में ही गरिमा दिलाने में मयंकजी का नाम हमेशा याद किया जाना चाहिए। हिन्दी और भारतीय भाषाओं को लेकर उनका जज़्बा, उनकी सोच अद्भुत है। बहुभाषी मयंकजी हिन्दी में बेहद ख़ूबसूरत कविताएँ लिखते हैं, रंगों की भी उनकी अपनी अलग भाषा है। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी मयंकजी उन कुछ लोगों में से हैं जो किसी को भी अपनी गर्मजोशी, दोस्ताना व्यवहार और प्रतिभा से पलों में क़ायल कर दे। नई तकनीक पर हिन्दी के हाल को लेकर जब भी इतिहास लिखा जाना चाहिए मयंकजी का नाम उसमें आवश्यक रूप में दर्ज करना अनिवार्यता है क्योंकि मयंक छाया और लिटरेट वर्ल्ड के बिना कंप्यूटर और वेब पर हिन्दी का इतिहास नहीं लिखा जा सकता है।

Friday, September 5, 2014

Call for Papers - FUEL GILT Conference 2014

FUEL GILT Conference 2014 - Call for Papers
November 14-15, 2014
Pune, India

Welcome to the 2nd FUEL GILT Conference - the largest event of FOSS language technology - its challenges, solutions, best practices and its conventions. FUEL GILT Conference is all about language technology world, all about GILT industry - G11N, I18N, L10N, and Translation world. The event is showcase of the efforts of volunteer communities and different organizations in the field of language technology. This event also tells us the pain and conflicts of different cultures and languages. All things are revolved around the language - related to words! We Worship Words!

The organizers of FUEL GILT Conference are Red Hat and C-DAC GIST. Thanks a lot to both the organizations for their continuous support and helping hand.

FUEL is growing only because of the support of volunteer communities world-wide and several well known organizations! The power of the event is the power of collaboration, the power of sharing, the power of volunteerism! Currently, almost 60 language communities are working with the FUEL Project across various domain including desktop, mobile, cloud, web, agriculture, health etc.

Since 2008, FUEL Project is consistently working with the different language communities to provide standard linguistic resources eg. terminologies, style guides, assessment methods etc to the world. Like last year, please collaborate and cooperate to make the event a huge success!

Call for Papers

We are pleased to announce the Call For Papers for FUEL GILT Conference 2014. Abstracts are invited for presentation/workshop on substantial, original and unique research on all aspects of GILT Industry (Globalization, Internationalization, Localization and Translations) with special focus on linguistic resources, standardization, e-governance and language technology.

The areas of interest include, but are not limited to, the following:

Language Technology; Corpus Linguistics; Machine Translation; Natural Language Processing; Globalization; Language and Translations; Technical Terminology; Dictionary; Style Guide; Unicode/CLDR; Script Grammar; Translation Editor; Rendering Systems; Quality Assessment; Fonts; Input methods; FOSS and Localization; Computational Linguistics; Language & Culture; Endangered Language;
Internationalization

Please visit the event page for detailed information.

Wednesday, July 23, 2014

2471 दुनिया भर से और 197 भारत से - भाषाएँ मरने के कगार पर हैं

2471 - इतनी भाषाएँ मरनासन्न स्थिति में हैं। आज न कल ये मर जाएँगी। हर सप्ताह एक भाषा दम तोड़ देती है यानी उस भाषा को बोलने वाला आखिरी इंसान दम तोड़ देता है। भाषाई मौजैक से एक सदा के लिए हट जाता है। इसी बात को लेकर मैंने एक आलेख लिखा - अंगिका के संदर्भ में - यहाँ ओपनसोर्सडॉटकॉम पर। फ़ॉस इसे बचाने का माध्यम बन सकता है। और आगे आने के लिए है भी कौन।

Sunday, May 25, 2014

A report on LibreOffice India Community Ideation Meet-Up


16-MAY-2014
03.00 P.M.-05.00 P.M. IST.
Red Hat Office, Tower 10, Magarpatta City, Pune, India.
irc@freenode: libreoffice
hashtag: #libreofficeindia

Background

LibreOffice is one of the flagship products of a movement called 'FOSS'. It is one of the best office application suite which is available free of cost for most of the platforms and in many languages across the world. The application is useful for everyone from a student to a researcher and across various domains. Rajesh Ranjan and Chandrakant Dhutadmal were in a discussion for quite some time about the promotion and proliferation of this beautiful product and were not quite sure about the reach of this product in India. Hence, we had started a thread on marketing list of LibreOffice. After discussions with Charles-H. Schulz and Prof. Kannan from IIT Mumbai, we thought of having an Ideation meet up in India to discuss the current state of penetration of LibreOffice in India and how to increase the reach with the help of the Community.

Agenda of the meetup

1. Get to know each other
2. Introduction about LibreOffice marketing movement in India
3. Raise brand awareness on LibreOffice in India
4. How to attract volunteers to contribute to LibreOffice
5. Plan of Action


1. Get to know each other

Initially we thought the response to this event would be poor as it was planned on a short notice and also with small budget, but there were around 14 people face-to-face and one online who participated in the event. Thanks to Red Hat for hosting this event. We all got to know each other as well as the areas of interest where the participants could contribute. The members were from literally all aspects of LibreOffice community Viz. Development, Localization, Marketing, Testing and Documentation. Hence we can expect good contribution from these members in future. Participants of the events : Rajesh Ranjan, Chandrakant Dhutadmal, Keral Patel Anish Patil, Krishna Babu, Ankit Patel, Shankar Prasad, Shantha Kumar, Saibal, Shubhra Joshi, Sangeeta Kumari, Vishakha Dhutadmal, Ani Peter, and Manoj Giri. We discussed the agenda and background of the event through one small presentation

2. Introduction about LibreOffice marketing movement in India

By the time we met for the discussion, we knew that though LibreOffice is being used by many in India, the penetration level is too low. There are efforts done by individual organizations like C-DAC, Red Hat and IIT Mumbai on individual basis, but there is no collaborative effort in this direction. C-DAC has been involved in training (face-to-face) various Govt. offices and educational institutions on how to use LibreOffice since quite some time now. Prof. Kannan and his team has also put good efforts in terms of creating large number of self-instructional audio video tutorials on LibreOffice, in English (about 60), and with audio dubbed into many Indian languages (a total of about 500), SELF workshops on LibreOffice and to a lesser extent on Linux, Tamil Nadu Govt switching over to BOSS and  some more offices are switching to Fedora and other distributions which is good for LibreOffice. Prof. Kannan’s team is also trying to come up
with print edition of LibreOffice Manuals (500 copies) to promote LibreOffice in colleges, who need a "printed book" for the software to be included in their curriculum.

Having localized version of LibreOffice is important from promotion point of view. Currently, there are as many as 16 Indian languages where Localization teams exist.  Chandrakant Dhutadmal has already requested to create new teams for all those Indian languages that are currently not present.


3. Raise brand awareness on LibreOffice in India

Discussion amongst the members present on how to raise the brand awareness in India took place. Following are the point in nutshell which participants thought would be helpful.

*Introduction of Swags, T-Shirt, Sticker, Badges is very important.
*Conduct demo sessions in various colleges/ schools.
*Conduct LibreOffice development oriented Workshops.
*Using the social media extensively.
*Contacting SMEs/ Start-ups/ System Administrators
*Try to add LibreOffice in school/college curriculum
*Conducting various small events across the country.
*Help community members in participating in International events to interact with other contributors and learn more from them to replicate the model in India.
*Create Success stories and highlight them
*Organizations like C-DAC are already using LibreOffice. Can we target more such large organizations
*All FOSS based OS and related orgs use LibreOffice. We can also target other OS’s popular in market.
*Shipment of Physical CDs is necessary as downloading of softwares becomes difficult in India because of various problems which individuals face
*Support related to installations and other technical aspects needs to be provided to the end users. So, can we create virtual support groups.
*Pre-installation of LibreOffice on Laptops and Computer systems could also boost the penetration of LibreOffice.

4. How to attract volunteers to contribute to LibreOffice

*Start “LibreOffice Ambassador” type of Program
*Workshops/events/BOF/Webinars
*Screen casting of applications use and how to contribute for libreoffice.
*Language specific events can be done for localization. C-DAC is already willing to contribute translation for languages - already mails are there on list.
*Software Testing and Quality Management is important – Projects and Groups like FUEL Project, FLTG, SSCG can help in this regards.
*More Dictionaries can be integrated in LibreOffice.
*India Specific artworks can be created.

5. Plan of Action

This is just to start. We need to discuss more on plan of action. These are just few task we are going to do in another 1-2 months:

*Create success story in an educational institution: Chandrakant Dhutadmal volunteered to conduct one event in educational institute within a period of one month. Currently schools are having vacations.

*Conduct “Bhasha Computer Mela”- Shubhra Joshi and Sangeeta Kumari volunteered to coordinate and arrange the event in a school.

Pix of the events can be browsed here.

Thank you all for attending and supporting the event!

The report is published on mailing list of libreoffice already.

Monday, April 21, 2014

Sharing of Ownership to encourage collaboration in the Community

Mozilla Hindi Community Meet 2014 was a meet-up with a difference in the sense that it brought together the young and the old, the active and the not-so-active, those with experience and skills, and those with great optimism, enthusiasm and know-how. But the chemistry between the two 'generations' and diverse teams was quite magical, and communication near perfect. That is why it was a meet-up that promised little but delivered quite a bit and every participant went back with a sense of enthusiasm, energy and expectation. We did some solid concrete hands-on work and promised to continue the conversation. Mozilla Hindi Community Meet was organized on March 22-23, 2014 in Pune (India). The two-day event was organized by Mozilla. The meet was hosted by Red Hat at its Pune, India office. Different contributors working with different projects of Mozilla from different parts of India working for Hindi language participated in the meet. Ravikant, Vibhas Chandra Verma, Ashish Namdev, Umesh Agarwal, Shahid Farooqui, Guntupalli Karunakar, Meghraj Suthar, Suraj Kawade, Sangeeta Kumari, Chandan Kumar, Rajesh Ranjan, Aniket Deshpande, Himanshu Anand, and Ankit Gadgil participated in the meet.  

Agenda of Awesome

The event started on 22 March 2014 in the morning. I, being a co-ordinator of Mozilla Hindi team, welcomed all the participants. I initially gave a brief summary of all Mozilla projects and explained the need and agenda of the meetup. I also discussed about Mozilla products' translation, its various tools, related linguistic resources etc, necessary for the work of localization in Hindi. I discussed why I moved the translation from VCS hg to Pootle and how it hugely helped in the growth contributor base.

Hindi, lingua franca and its structure

A fellow of Center for Study of Developing Societies, a great open source enthusiast and theorist, Ravikant talked in detail about the basics of translation, its importance and its socio-cultural history and importance. He said that generally in India people take translation as a non-creative, boring and second rate work. We must give respect to our translators, and we must enjoy the creativity involved in the act of translation. He added that historically dominant languages have been used to create a gap between peoples. Later he gave elaborate examples to show how and why translation is an important exercise and how the volunteer open source community are engaged in a very major activity in the age of rapid transitions. A senior lecturer in the university of Delhi, Vibhas Chandra Verma, presented a talk on 'Good Hindi'. He quoted from the great saint poet Kabir to say that language is like free-flowing water, which gathers no mud. He replied about a question between the difference of Hindi and Urdu and said that there is almost no difference between Hindi and Urdu in common parlance, except the their different scripts. It is difficult to distinguish between Hindi and Urdu sentences and grammars. He also cited several examples from Sanskrit, Hindi and Urdu to demonstrate the similarity and difference between Sanskrit on the one hand and Hindi and Urdu on the other.
 

Style is the Soul - Hindi Style Guide Reviewed

One major agenda of the meet was to review Computer Translation Style and Convention Guide for Hindi prepared by the larger Hindi community under FUEL Project. The participants discussed the positives and negatives of the guide in detail. After discussing the broad parameters of a good guide, Ravikant and Vibhas Chandra Verma took the responsibility of editing the document. On the basis of the guidelines decided upon, we will soon have it ready to be finally reviewed by the community.And then we will be ready to put it in the public domain. The style guide is written in English so that any Quality Engineer can also access it and work on the quality assessment of the translation.  

And quite flows the Fennec - Feel of Fennec is revitalized

The whole team reviewed the major GUI of Firefox for Andriod in Hindi. Fennec is going to be released in all Indian languages including Hindi. Years before, Firefox browser in Hindi was reviewed at Sarai-CSDS, Delhi in a review workshop organized by Sarai-CSDS. A review meet of this kind is essential before any major release and the Hindi Mozilla review team felt the that the review process for Fennec was satisfactory.

Typing made easy - type क, ख, ग in FirefoxOS

 One major progress happened in the area of FirefoxOS Hindi Devanagari Keyboard. There are no Indic keyboard (except for Bengali) for Firefox OS. On the 2nd day of the meet, Karunakar, Secretary of IndLinux Group prepared a Hindi Inscript keyboard for FirefoxOS and added it to GitHub, and this is the pull request for the same. On the basis of Hindi, Aniket added the Marathi Inscript keyboard in no time and it is here. We are thankful to Karunakar and Aniket. Hope this will be of great use for FirefoxOS and create a momemtum for the FirefoxOS keyboards for Indian langauges. Firefox OS KEON is actually very attractive and it was shown around in the meetup. A lot of them had not seen or heard about keon! So, Mozilla Hindi Community requests Mozilla to send keon to its contributors and hopes they will listen to our request.

Share Ownership - Help your language grow

The most important agenda of the meet was to share the ownership and choose one person responsible for each major work area. Initially as a coordinator of Mozilla Hindi Community, myself, proposed the idea of a division of labour and sharing of ownership. I started a thread on the community list and emphasized upon the need of sharing of not just work and contribution but also the sharing of ownership. In the meet it was realized that sharing of ownership gives a sense of responsibility in the new person and it helps enlarge the contributor base, and enhances a sense of collaboration among a bigger network. Karunakar took the responsibility of managing the Hindi keyboard for FirefoxOS. Ravikant and Vibhas happily agreed to mentor the community and help in translating problematic strings whenever in need. And here is the result of division of labour.  

Localization Training and SUMO/WebMaker

On the 2nd day, Chandan Kumar worked with all the attendees and gave them all necessary traning to use efficiently all the resources available. He showed by example and worked with all the volunteers to solve their problem and question related to localization. Ankit Gadgil shared about Webmaker and its localization. Ravikant who encountered the webmaker for the first time, felt that the Webmaker was going to change the web as we knew it. Ashish Namdev discussed issues in SUMO translation and Hindi community agreed to translate all the major 100 frequently used articles in SUMO in Hindi language.The SUMO team should be merged with Pootle to facilitate convenience in and consistency of translation. The community also stressed on the need of holding sprints and agreed to use it in future to overcome lags if any. The etherpad contains several information that came after pooling together of little known links of dictionaries in available in the public domain

Aama adami ka browser - aama adami se dur kyon! ( Why is the common people's browser in languages not so popular amongst commoners)

It is sad that though we work hard to create a better product in Hindi but the market and download numbers are not so convincing compared to the vast population of the Hindi speaking people. A brainstorming session was organized on the 2nd day of the meet. Several suggestions came and we, the Mozilla Hindi community decied that we will try our best to work on those suggestions. Ravikant and Vibhas Chandra Verma told that they will also support the cause in their own little ways.  

Khaana-Peena

First day we took dinner at Tjs Brew Works, Pune that was very near to the venue of the meet. The Khana-Peena both were awesome including the ambience of the the restaurant. The awesome working lunch, pizza and snacks for both days were arranged by the host of the event - Red Hat. The whole facility team of Red Hat was very much helpful. We are thankful to Red Hat and Mozilla for the great food that ignited out thought. I am thankful to all the active volunteer community who attended the meetup. I am thankful to Mozilla for sponsoring the event and to Red Hat for hosting it. We the whole active community are thankful to Ravikant and Vibhas Chandra Verma who have readily helped the community if and when called upon. Chadan help was very important in training the localizers. Last but not the least, Shahid Farooqi took the responsibility of filing bugs for budget and related affairs, and was key in coordinating the event. Thanks a lot to Shahid for shouldering this additional responsibility. We are Hindi, We are India, We are Mozilla, We are Awesome! Ref Link: Event Page Event Pix Team Wiki Page Etherpad Silde

Thursday, March 27, 2014

आम आदमी का ब्राउज़र आम आदमी से दूर क्यों

फ़ायरफ़ॉक्स मुक्त स्रोत के उन कुछ उत्पादों में से है जिनकी आम लोगों में पहुँच काफी ज़्यादा है। इसलिए जब सीएसडीएस के रविकांतजी ने हाल में 22-23 मार्च को रेड हैट पुणे कार्यालय में आयोजित मोज़िला हिन्दी सामुदायिक सम्मेलन में मोज़िला उत्पाद मसलन फ़ायरफ़ॉक्स ब्राउज़र, फ़ेनेक, ओएस आदि के हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में पहुँच बढ़ाने के लिए हो रही चर्चा के दौरान एक ज़ुमला उछाला कि आम आदमी का ब्राउज़र आम आदमी से दूर क्यों (हिन्दी में) तो बात में काफी सचाई नज़र आई। इसमें कोई शक नहीं कि फ़ायरफ़ॉक्स आम आदमी का ब्राउज़र है। यह आम आदमी के द्वारा बनाया हुआ है। ब्राउज़र कैसा होना चाहिए इसका एक बड़ा हिस्सा स्वयंसेवी समुदाय देखती है। जहाँ तक भाषाई अनूदित ब्राउज़र की बात है लगभग सारा का सारा काम भाषाई समुदाय ही निर्धारित करते हैं। लेकिन इस ब्राउज़र के डाउनलोड अपेक्षाकृत काफी कम हैं और यह भारत की एक बड़ी सांस्कृतिक समस्या का हिस्सा भी है। बहरहाल, हमने फ़ायरफ़ॉक्स के डाउनलोड, उसके बाज़ार और संभावित श्रोता तक इसकी पहुँच सुनिश्चित करने को लेकर कुछ गंभीर बातें की। इस कार्यक्रम में मेरे साथ सीएसडीएस के रविकांत, दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी के लेक्चरर विभास चन्द्र वर्मा, आशीष नामदेव, उमेश अग्रवाल, शाहिद फारूकी, इंडलिन्क के गुंटुपल्ली करुणाकर, मेघराज सूथर, सूरज कावडे, संगीता कुमारी, चंदन कुमार, अनिकेत देशपांडे, हिमांशु आनंद, और अंकित गाडगिल मौजूद थे। इसकी विस्तृत रपट मैंने विभिन्न डाक-सूची पर भी भेजी है।

इस मीट-अप ने दो पीढ़ियों को एक मंच पर लाने में मदद की। बात-चीत की कमी जो सामान्य रूप से अलग-अलग परियोजना से जुड़े लोगों में दिखती है उसे पाटने की गंभीर कोशिश हुई। दो पीढ़ियों के बीच कितने आराम से, कितनी समरसता से बात हो सकती है और कैसे इसके जरिए बेहद ख़ूबसूरत तार्किक परिणति हासिल की जा सकती है - इसे इस छोटे से सम्मेलन की सफलता को देखकर सोचा जा सकता है। मैं इस कार्यक्रम को लेकर हालाँकि आरंभ में थोड़ा सशंकित था लेकिन ताज़ा ख़ून वाले ये सभी युवा बच्चे बेहद खुले और परिष्कृत सोच के रहे। हम इनके खुलेपन और सकारात्मक सोच के कायल हैं। हमने कई काम इस सम्मेलन के दौरान किए। हमने फे़नेक के अनुवादों की समीक्षा की - मौटे तौर पर। हमने बेवमेकर को नज़दीक से जाना। हमने सूमो की प्रक्रिया को गौर से सुना। हमने कोशिश की - लोगों को लोकलाइज़ेशन की बारीकियों से परिचित कराने की। और इन सभी कामों को हमारी युवा टीम ने किया - मिलकर। करूणाकरजी ने फ़ायरफ़ॉक्स ओएस के हिन्दी कुँजीपट पर काम किया और अनिकेत ने तुरत ही उसी आधार पर मराठी का भी काम समाप्त कर लिया। इस कार्यक्रम में काफी कम समय की सूचना पर सीएसडीएस के रविकांतजी और दिल्ली विश्वविद्यालय के लेक्चरर विभासजी आए और भाषा से जुड़ी काफी जरूरी बातें रखीं। फ़ेनेक की समीक्षा में जरूरी मदद के साथ ही उन्होंने फ़्यूल हिन्दी स्टाइल गाइड में अपेक्षित सुधार का ज़िम्मा भी अपने हाथ में लिया है।

इस कार्यक्रम की जो सबसे ख़ास बात रही - वह रही स्वामित्व के साझा किए जाने की। अभी तक अधिकतर फ़ायरफ़ॉक्स के काम मैं ही देखता था...सूमो और वेबमेकर को छोड़। मैंने पाया कि मुक्त स्रोत में लोग धीरे-धीरे लोग अपने प्रोजेक्ट से बेहद पजेसिव तरीके से जुड़ जाते हैं - एक नकारात्मक जुड़ाव। शाहिद और चंदन ने पिछले साल कुछ अनुवाद स्प्रिंट किए थे। कुछ मुझे भरोसा वहाँ से ही जगा था। मुझे अहसास हुआ कि महज काम के बंटवारे से आगे बढ़ना अब जरूरी है और नए लोगों को जोड़ना बेहद आवश्यक है - हमारी भाषा के लिए भी, मुक्त स्रोत के लिए भी। मैंने स्वामित्व के साझा किए जाने की सोची और सकारात्मक चर्चा के बाद इस मुकाम पर पहुँचा थोड़ी निश्चिंतता तो मुझे आई है और मैं सबका बहुत शुक्रगुजार हूँ। शाहिदजी ने इस कार्यक्रम के संयोजन और संकल्पना में महत्पपूर्ण सहयोग दिया है। मोज़िला रेप्स कॉउंसिल ने कार्यक्रम के लिए धन मुहैया कराया और रेड हैट ने इसकी मेज़बानी की। हम मोज़िला और रेड हैड के भी शुक्रगुजार हैं।

Friday, February 21, 2014

फुर्ती से सही-सही टाइप करें टाइपिंग-बूस्टर की मदद से

अगर आप अपनी टाइपिंग की गति से आज़िज हैं या फिर अपनी तेज़ गति को और तेज़ करने की सोच रहे और कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है हैं निःसंदेह आप टाइपिंग बूस्टर आज़मा सकते हैं। टाइपिंग बूस्टर एक ऐसा औज़ार है जो आपकी अँगुलियों को आराम देता है और पाठ का अनुमान लगाकर आपको लिखने में मदद करता है। २०१० में आरंभ हुआ यह प्रोजेक्ट अब कई भाषाओं में है और अब यह बाएँ से दायीं ओर चलने वाली लिपियों का भी समर्थन करता है। फेडोरा में आप अगर इसे संस्थापित करना चाहते हैं तो काफी आसान है बस टर्मिनल खोलिए और रूट के साथ yum install ibus-typing-booster hunspell- लिखिए। आपकी सेवा में यह हाज़िर हो जाएगा।

गति को वाकई काफी बढ़ाने वाला यह टाइपिंग बूस्टर कई ख़ूबियों को लिए है। गति तो बढ़ती ही है लेकिन चूँकि यह साथ ही स्पेलचेकर की मदद भी लेती है तो आपकी गलतियाँ होने की उम्मीद कम रहती है। आंशिक इनपुट पर अनुमान, टैब से अगले अनुमानित अक्षर पर जाना, वर्तनी-जाँच, मनपसंद शब्द सूची, सभी महत्वपूर्ण कुँजी लेआउट का समर्थन, ४० से अधिक भाषाओं में समर्थन, बेहतर परिशुद्धता आदि कुछेक महत्वपूर्ण विशेषताएँ हैं। यह काफी आसान है उपयोक्ताओं के लिए।

कुछ सुझाव टाइपिंग बूस्टर के लिए। पहले तो यह उपयोक्ता द्वारा निर्धारित हो सकने वाला होना चाहिए कि हम कितने वर्णों के शब्दों को सुझाव के तौर पर चाहेंगे। इसके अलावा उदाहरण के तौर पर मैं "की" लिख चुका हूँ तो सलाह के तौर पर "की" नहीं दिखना चाहिए। साथ में संलग्न चित्र में इसे देखा जा सकता है। 



एक और दिक्कत आती है...अगर हम दो अक्षर लिख चुके हैं और दूसरे अक्षर को मिटाकर कोई और लिख देते हैं तो सलाह पूरे लिखे शब्दांश पर न होकर बाद में जोड़े गए वर्ण के आधार पर दिखाया जाता है। मेरी तरफ से बस इतना ही है।

आप भी आज़माएँ। हैंड-हेल्ड डिवायसों के ज़माने में इसकी और उपयोगिता है और इसलिए इनके डेवलपरों का साधुवाद और शुक्रिया।

Tuesday, February 4, 2014

जानकीपुल पर मेरे बेटे अमृत की कविताएँ

मेरे ग्यारह साल के बेटे अमृत की कविताएँ जब हिन्दी के जाने-माने साइट जानकीपुल पर छपी तो एकबारगी विश्वास नहीं हुआ। जानकीपुल हिन्दी साहित्य के गंभीरतम आलेखों, कविताओं, और चर्चाओं का प्रमुख अड्डा है। कविता में अमृत की रुचि है और वह काफी समय से लिख रहा है, लेकिन जानकीपुल पर भेजने में मैं काफी हिचक रहा था। मशहूर कथाकार प्रभातजी का शुक्रिया कि उन्होंने अपनी खूबसूरत मॉडरेटर टिप्पणी के साथ इसे छापा और मुझे लिखा भी कि अमृत में मौलिक प्रतिभा है और इसे बनाए रखिए।

माँ-बाप होने के नाते हमें अमृत की लिखी कविताएँ अच्छी तो लगती थीं लेकिन इतनी जबरदस्त प्रतिक्रिया आएगी सोचा भी नहीं था। प्रभातजी ने बताया कि इसकी कविताओं ने पेज व्यूज़ के पिछले सारे सालों के रिकार्ड को महज चंद दिनों में पीछे छोड़ दिया है। फेसबुक और साइट के पेज पर की गई टिप्पणियाँ बेहद सकारात्मक हैं। अमृत बहुत खुश भी  है। एक बार फिर प्रभातजी का शुक्रिया हमारी तरफ से।